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जानें कि सेविंग अकाउंट ज़्यादा फ़ायदेमंद क्यों नहीं हैं और आपके पास इसके अतिरिक्त कौन-से विकल्प मौजूद हैं।
हर महीने सैलरी पाना दुनिया के सबसे बेहतरीन अनुभव में से एक है, है ना?
हम अपने जीवन में, 30-40 सालों तक हर हफ़्ते 40-50 घंटे कड़ी मेहनत करके एक बेसिक सैलरी पातें हैं जो हमें फ़ाइनेंशियल रूप से आत्मनिर्भर बनने में मदद करती है।
अपनी रोज़ाना की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए हम उस पैसे को अपने सेविंग अकाउंट में डाल देते हैं ताकि ज़रूरत पड़ने पर हमें आसानी से कैश मिल सके।
सेविंग अकाउंट आपको लगभग 2% से 4% का सालाना रिटर्न देते हैं। हो सकता है यह इंवेस्टमेंट पर बेस्ट रिटर्न ना हो, लेकिन यह निश्चित रूप से कुछ भी न होने से बेहतर है।
इसका जवाब है महंगाई।
दुर्भाग्य से, भारत की महंगाई दर, दुनिया में महंगाई की सबसे ज़्यादा दरों में से है। चिंता न करें क्योंकि आप इन 3 सरल स्टेप को फ़ॉलो करके महंगाई को मात दे सकते हैं।
हर किसी को महंगाई को लेकर चिंता रहती है, क्योंकि इससे बुनियादी ज़रूरतों की क़ीमत भी साल दर साल बढ़ती है।
आजकल बाज़ार में महंगाई दर 6% या इससे भी ज़्यादा है। मेट्रो शहरों में यह काफ़ी ज़्यादा है।
इसका मतलब है कि बैंक अकाउंट में जो पैसा बढ़ नहीं रहा है, वो आपके एसेट को लगातार कम करता है।
कैलकुलेशन करने पर आप पाएंगे कि 10-15 सालों में, आपकी पर्चेज़िंग पॉवर लगभग 20% -30% तक कम हो जाएगी।
अगर हम पिछले कुछ सालों की महंगाई दर को देखते हैं तो यह पाते हैं कि महंगाई हमेशा लोगों के बैंक अकाउंट में सेविंग पर मिलने वाले रिटर्न से ज़्यादा रही है।
जैसा कि आपने देखा, सेविंग की तुलना में क़ीमतें ज़्यादा तेज़ी से बढ़ रही है इसीलिए आपके सेविंग अकाउंट में जो पैसा जमा है, उसकी वैल्यू समय के साथ लगातार कम होती जाएगी।
इस समस्या से निपटने के लिए और अपने पैसे को महंगाई के बराबर या इससे ज़्यादा बढ़ाने के लिए, उसे इंवेस्ट करें।
आपने यह गौर किया होगा कि इतने सालों में -
· ग्रॉसरी की क़ीमतें बढ़ गई हैं।
· फलों और सब्जियों की क़ीमतें बढ़ गई हैं।
· घर का किराया बढ़ गया है।
· मेडिकल ख़र्च बढ़ गए हैं।
· मूवी टिकट की क़ीमते बढ़ गई हैं।
· रेस्टोरेंट में खाने-पीने का बिल बढ़ गया है।
· लगभग सभी वस्तुओं और सेवाओं की क़ीमतों में बढ़ोतरी हुई है।
सेविंग अकाउंट के इंटरेस्ट रेट लगभग 3.5% हैं, जबकि भारत में महंगाई की दर लगभग 4.5% है।
इसलिए अगर आप सेविंग अकाउंट में ₹100 डालते हैं और 3.5% सालाना इंटरेस्ट पाते हैं, तो आपका इंवेस्ट किया गया पैसा एक साल के बाद ₹103.5 हो जाएगा।
लेकिन जिन वस्तुओं की क़ीमत साल भर पहले ₹100 थी, अब उनकी क़ीमत ₹104.5 है। धीरे-धीरे, कई सालों में, यह अंतर बढ़ता ही जाता है।
इसका मतलब है कि अगर आप सेविंग अकाउंट में पैसा डालते हैं और 3.5% इंटरेस्ट कमाते हैं, तो आपको उन वस्तुओं और सेवाओं को खरीदने के लिए अतिरिक्त ₹1 की ज़रूरत होगी जिन्हें आप एक साल पहले ₹100 में खरीद सकते थे।
परनिका, श्रेया और मुस्कान तीन सहेलियां हैं। 2020 में, उनमें से हर एक ने ₹5 लाख कमाए।
यह पैसा महामारी जैसी इमरजेंसी में काम आ सकता है, यह सोचकर ये तीनों इन पैसों को लेकर अलग-अलग स्ट्रेटजी अपनाती हैं।
· परनिका को कैश के ज़रिए काम करना पसंद है। उसने अपने पैसे सेविंग अकाउंट में जमा कर दिए हैं।
· श्रेया को इमरजेंसी फ़ंड बनाने के किसी विकल्प के बारे में पता नहीं है, परिणामस्वरूप, वह भी इस पैसे को अपने बैंक अकाउंट में जमा कर देती है।
· मुस्कान लिक्विड फ़ंड के फ़ायदों के बारे में जानती है और अपना पैसा लिक्विड फ़ंड में इंवेस्ट करती है।
· हर साल परनिका के इंवेस्ट किए गए पैसों की वास्तविक वैल्यू घटती जाती है। 20 साल बाद उसके बैंक अकाउंट में जमा ₹5 लाख की वैल्यू सिर्फ़ ₹2.07 लाख के बराबर रह जाएगी। यह वैल्यू में 50% से ज़्यादा की गिरावट है। यह इन तीनों में सबसे घाटे का सौदा हुआ।
· 20 सालों में, श्रेया के इंवेस्ट किए गए पैसों की वास्तविक वैल्यू ₹5 लाख से घटकर ₹4.12 लाख रह जाएगी। यह भी फ़ायदे का सौदा नहीं है।
· मुस्कान के इंवेस्ट किए गए पैसे वास्तविक रूप में ₹5 लाख से बढ़कर ₹8.32 लाख तक हो जाएंगे। यह उसके सेविंग अकाउंट में सेव किए गए पैसों से दोगुने से भी ज़्यादा है।
ओपन गवर्नमेंट डेटा प्लेटफ़ॉर्म के नए डेटा के मुताबिक़, महंगाई के अलावा, ध्यान में रखने के लिए कुछ अन्य बातें इस प्रकार हैं:
हां, आपके सेविंग अकाउंट में कुछ पैसे आ जाने पर, आपके पास कुछ विकल्प हैं, जहां आप अपना पैसा लगा सकते हैं।
आपको बचे हुए फ़ंड का ज़्यादातर फ़ायदा, समझदारी से इंवेस्ट करके कमाना चाहिए। विभिन्न प्रकार के इंवेस्टमेंट विकल्प मौजूद हैं, जो इस प्रकार हैं:
· बेहतर इंटरेस्ट रेट देने वाले
· टैक्स बिल कम करने में आपकी मदद करने वाले
· नेट वर्थ बढ़ाने में आपकी मदद करने वाले
आपकी इनकम और ख़र्च से तय होता है कि आपको कहां, कब और कितना इंवेस्ट करना चाहिए। आपकी सेविंग को बेहतर ढंग से इस्तेमाल करने के कुछ विकल्प नीचे दिए गए हैं:
सोना एक मूल्यवान एसेट है जिसकी वैल्यू में लगातार बढ़ोतरी हुई है, जिससे यह एक सुरक्षित और सिक्योर इंवेस्टमेंट बन गया है।
पिछले पांच सालों में सोने ने सालाना 20% से ज़्यादा रिटर्न दिया है। यह एक अच्छा डायवर्सिफ़ायर माना जाता है जो पोर्टफ़ोलियो रिस्क को कम करने में मदद करता है।
इंवेस्टमेंट एक्स्पर्ट के मुताबिक़, किसी व्यक्ति के नेट इंवेस्टमेंट पोर्टफ़ोलियो में सोने में इंवेस्टमेंट 5% से 10% होना चाहिए।
अब जैसे-जैसे पूरी दुनिया डिजिटल होती जा रही है, डिजिटल गोल्ड ज़्यादा से ज़्यादा लोकप्रिय होता जा रहा है।
जानें कि डिजिटल गोल्ड क्या है ! यह सिर्फ़ फ़िज़िकल गोल्ड का एक विकल्प है।
इस पर एक्सचेंज रेट में हेरफेर और उतार-चढ़ावों का ख़ास फ़र्क नहीं पड़ता है। साथ ही यह इंवेस्टर को फ़िज़िकल गोल्ड को हाथ लगाए बिना दुनिया भर में आसानी से सोने को खरीदने-बेचने में सक्षम बनाता है।
बांड, IOU की तरह, एक डेट सिक्युरिटी होता है। उधार लेने वाले, उन इंवेस्टर को बांड बेचते हैं जो उन्हें तय किए गए समय के लिए पैसा उधार देने के लिए तैयार होते हैं।
जब रिस्क से बचने की बात आती है, तो बांड अक्सर बेस्ट विकल्प होते हैं।
जब आप बांड खरीदते हैं, तो आप बांड जारी करने वाले को पैसा उधार दे रहे होते हैं जो कोई कंपनी, नगरपालिका या सरकार हो सकती है।
बदले में, बांड जारी करने वाला आपको बांड की क़ीमत के साथ तय किए गए समय के लिए, तय की गई दर से, इंटरेस्ट देने का वचन देता है। बांड की मूल क़ीमत को, निर्धारित समय के बाद मैच्योर होने पर, फ़ेस वैल्यू या पार वैल्यू के नाम से भी जाना जाता है।
इसके बाद आपको अपनी मूल क़ीमत और इंवेस्टमेंट के दौरान कमाया गया इंटरेस्ट वापस मिलता है।
जब शॉर्ट और मीडियम टर्म के इंवेस्टमेंट की बात आती है तो बांड का ट्रैक रिकॉर्ड भी बेहतर होता है।
सर्टिफ़िकेट डिपोज़िट (CD) एक प्रकार का सेविंग अकाउंट है जो कमर्शियल बैंकों द्वारा ऑफ़र किया जाता है जो पारंपरिक सेविंग अकाउंट की तुलना में काफ़ी ज़्यादा इंटरेस्ट रेट देते हुए आपके द्वारा इंवेस्ट किए गए पैसे तक आपके एक्सेस को सीमित कर देता है।
इस डिपोज़िट की क़ीमत समय के साथ बढ़ती है, लेकिन अगर तय किए गए समय से पहले इसे निकाल लिया जाए, तो उस पर फ़ीस लग सकती है।
इसका समय एक हफ्ते से लेकर एक साल तक हो सकता है। इसके लिए कम से कम ₹1 लाख का इंवेस्टमेंट ज़रूरी है। इसे रेगुलेट करने की ज़िम्मेदारी रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) की है।
म्यूचुअल फ़ंड, कॉर्पोरेशन होता है जो कई इंवेस्टर से पैसा इकट्ठा करता है और इसे स्टॉक, बांड और कम समय के डेट में इंवेस्ट करता है।
म्यूचुअल फ़ंड का पोर्टफ़ोलियो, फ़ंड की सभी होल्डिंग से बना होता है। म्यूचुअल फ़ंड, इंवेस्टर द्वारा खरीदे जाते हैं।
हर एक शेयर, फ़ंड के ओनरशिप और रेवेन्यू में इंवेस्टर के हिस्से को रिप्रेज़ेट करता है।
म्यूच्यूअल फ़ंड में सिस्टमैटिक इंवेस्टमेंट प्लान (SIP) के ज़रिए थोड़ा - थोड़ा इंवेस्ट करने से इक्विटी पोर्टफ़ोलियो की वोलेटिलिटी को कम किया जा सकता है।
डायवर्सिफ़ाइड म्यूचुअल फ़ंड में SIP इंवेस्टमेंट करना चाहिए।
शेयर बाज़ार में इंवेस्ट करने से डरना एक आम बात है, इसलिए कम पैसे से शुरुआत करें। ऐसे में इंडेक्स फ़ंड एक बेहतरीन विकल्प है।
अनुभवी स्टॉक पिकर के लिए भी फ़ायदे वाला स्टॉक चुनना बेहद मुश्किल होता है, इसीलिए इस मामले में आप चिंता-मुक्त रहें।
दूसरी ओर, एक इंडेक्स फ़ंड में, स्टॉक मार्केट में वर्तमान में बिज़नेस करने वाली लगभग सभी बड़ी इक्विटी को लगभग समान मात्रा में खरीदा जाता है।
इंडेक्स फ़ंड, आपको बड़ी संख्या में शेयरों (200-500) में इंवेस्ट करके अपने पोर्टफ़ोलियो में विविधता लाने में सक्षम बनाता है।
स्वाभाविक तौर पर, कुछ शेयरों की क़ीमतें बढ़ेंगी जबकि कुछ की गिरेंगी, लेकिन पिछले परफ़ॉर्मेंस पर ध्यान दें तो शेयरों की क़ीमतें गिरने की बजाय ज़्यादातर बढ़ी ही हैं।
यह काफ़ी ज़्यादा आसान और कॉस्ट-इफ़ेक्टिव इंवेस्टमेंट मैथड है।
स्टॉक एक प्रकार का इंवेस्टमेंट है जो कंपनी की ओनरशिप के एक हिस्से को दिखाता है।
स्टॉक उन इंवेस्टर द्वारा खरीदे जाते हैं जो मानते हैं कि स्टॉक की क़ीमतों में समय के साथ बढ़ोतरी होगी।
जब आप किसी फ़र्म के स्टॉक का शेयर खरीदते हैं, तो आप उस कंपनी का एक छोटा-सा हिस्सा खरीद रहे होते हैं।
इंवेस्टर उन फ़र्म में स्टॉक खरीदते हैं, जिनकी वैल्यू में उन्हें बढ़ोतरी की संभावना मालूम होती है। अगर ऐसा होता है, तो कंपनी के शेयर की वैल्यू बढ़ भी जाती है।
उसके बाद, स्टॉक को फ़ायदे के लिए बेचा जा सकता है।
इंवेस्टर द्वारा अन्य इंवेस्टमेंट विकल्पों की तुलना में शेयरों को चुनने का मुख्य कारण यह है कि स्टॉक बड़ा रिटर्न देते हैं।
भारतीय शेयर बाज़ारों में इंवेस्टमेंट सुरक्षित है; फिर भी, कहीं भी इंवेस्ट करने से पहले गहराई से स्टडी और प्लॉनिंग की ज़रूरत होती है।
याद रखें - पहले इंवेस्ट करें, बाद में ख़र्च करें, सबसे बाद में सेव करें। ज़्यादातर लोग सैलरी मिलने पर पहले ख़र्च करते हैं और बाद में इंवेस्ट करते हैं।
बेहतर स्ट्रेटजी यह होगी कि सबसे पहले सेविंग (जैसे, आपकी सैलरी का 25%) करें और फिर बाकी का ख़र्च करें।
इसके लिए संयम और संतुलन की ज़रूरत होगी। अगर कोई संदेह है, तो फ़ाइनेंशियल एडवाइज़र से सलाह लें।
निष्कर्ष यह है कि पैसा सेविंग अकाउंट में या अपने घर में नहीं रखना चाहिए। इसे हमेशा लिक्विड फ़ंड में इंवेस्ट करते रहें।