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Financial Education

क्या आपको आपके इंवेस्टमेंट पर इंफ़्लेशन के प्रभाव की जानकारी है? जार ऐप के साथ इंफ़्लेशन-प्रूफ़ रहें।

December 21, 2022

हर साल हमारी कॉस्ट ऑफ़ लिविंग 5-7% तक बढ़ जाती है, इसी को इंफ़्लेशन कहते हैं। यहां जाने कि यह आपको किस प्रकार प्रभावित करती है और आप इससे कैसे पार पा सकते हैं।

पहले सीन सेट करते हैं। मान लीजिए, आप सन् 1998 में, कॉफ़ी पीने के लिए कैफ़े जाते हैं। इस समय आपको कॉफ़ी की क़ीमत सिर्फ़ ₹8 पड़ती है।

आज के संदर्भ में देखें तो, सन् 2021 में आप उसी कैफ़े में जाते हैं, वही कॉफ़ी ऑर्डर करते हैं, लेकिन उसकी क़ीमत अब ₹196 है (हर साल 7% इंफ़्लेशन मानकर चलते हैं।)

केवल एक कॉफ़ी की क़ीमत में इतना बड़ा उछाल दर्शाता है कि इंफ़्लेशन किस तरह आपका नुकसान करती है।

इसलिए, आम जन की भाषा में इंफ़्लेशन या ‘कॉस्ट ऑफ़ लिविंग’ में बढ़ोतरी हर उस चीज़ को प्रभावित करती है जिसे हम खरीदते हैं और इस्तेमाल करते हैं।

भारत में, पहले इंफ़्लेशन की सालाना औसत दर लगभग 7% हुआ करती थी जो अब सन् 2021 में गिरकर 5.7% हो गई।

 

लेकिन असल में इंफ़्लेशन क्या होती है?

इंफ़्लेशन शब्द का इस्तेमाल समय समय पर वस्तुओं और सेवाओं की क़ीमत में बढ़ोत्तरी और रुपए की क़ीमत में कमी को परिभाषित करने के लिए होता है।

इससे आपकी खरीदारी की क्षमता कम होती है। याद कीजिए, जब आप किशोरावस्था में थे, तब ₹10 आपके लिए क्या मायने रखते थे। और आज के बच्चों की नज़र में इसकी क्या क़ीमत रह गई है।

क़ीमतें हर साल बढ़ रही है, लेकिन इंफ़्लेशन के साथ क्या आपकी इनकम भी बढ़ रही है? हर किसी की इनकम तो नहीं बढ़ रही है।

इसी कारण मिडल और लो-इनकम वाले लोगों को अपनी जीवनशैली को मेंटेन रखने के लिए जूझना पड़ता है।

हो सकता है, इंफ़्लेशन के कारण रेगुलर खर्चों में 2-3% की बढ़ोतरी आपको कुछ समय तक न खले, लेकिन लंबे समय में इसका बड़ा प्रभाव पड़ता है, खास तौर पर तब जब आप रिटायर होने की तैयारी करते हैं।

इससे आमदनी और खर्च के बीच की कशमकश और बढ़ सकती है। नतीजतन, भविष्य के लिए बचत करते समय, आपको ऐसी स्कीम देखनी चाहिए जिस पर इंफ़्लेशन का प्रभाव नहीं पड़ता।

 

इंफ़्लेशन क्यों होती है?

इंफ़्लेशन एक बहुत बड़ी आर्थिक समस्या है। मांग और पूर्ति में संतुलन न होने से इंफ़्लेशन सबसे ज़्यादा तेजी से बढ़ती है।

जब मांग ज़्यादा हो और पूर्ति कम तो इंफ़्लेशन को रोका नहीं जा सकता। उदाहरण के तौर पर, बैंगलोर और मुम्बई जैसे बड़े शहरों में हाउसिंग की क़ीमत ज़्यादा होती है।

ऑर्गेनिक सब्ज़ियां और फ़ल भी कम पूर्ति के कारण महंगे होते हैं।

मैन्युफ़ैक्चरिंग खर्च जैसे कच्चा माल और मजदूरी, बढ़ने पर भी क़ीमतें बढ़ जाती है। किसी प्रोडक्ट या सर्विस की मांग बढ़ने पर भी इंफ़्लेशन बढ़ सकती है, क्योंकि लोग उस प्रोडक्ट या सर्विस के लिए ज़्यादा पैसे देने को तैयार होते हैं।

अगर लोग किसी कमोडिटी के लिए ज़्यादा पैसे देने को तैयार हैं, तो कोई उसे कम क़ीमत में क्यों बेचेगा?

क़ीमतें बढ़ने का एक बड़ा कारण बहुत ज़्यादा मुद्रा प्रवाह (करंसी फ़्लो) भी है। जब अर्थव्यवस्था में ज़्यादा मात्रा में छपी हुई मुद्रा प्रवेश करती है तो मुद्रा की क़ीमत घट जाती है।

 

क्या इंफ़्लेशन आपके और आपके इंवेस्टमेंट के लिए रिस्क है?

हां! अगर आपने अपने पोर्टफ़ोलिया का बड़ा हिस्सा फ़िक्स इनकम में इंवेस्ट कर रखा है, तो इंफ़्लेशन आपके लिए बड़ा रिस्क हो सकती है।

वास्तव में, अगर आपके पास कैश या कैश के समान धनराशि ज़्यादा है तो आपको और ज़्यादा नुकसान होगा। जैसा कि कहा जाता है, कंपाउंड इंट्रेस्ट से जो मिलता है, इंफ़्लेशन उसे बराबर कर देती है।

दूसरे शब्दों में कहें तो, इंफ़्लेशन कंपाउंड इंट्रेस्ट का उल्टा, यानि डिकंपाउंड इंट्रेस्ट की तरह होती है।

क्योंकि हर साल की इंफ़्लेशन पिछले साल की इंफ़्लेशन में जुड़ जाती है, इसलिए इसका प्रभाव कंपाउंड इंट्रेस्ट के समान ही होता है।

इस सिनेरियो को समझें : आप एक डिपॉज़िट में ₹1 लाख इंवेस्ट करते हैं जिस पर आपको हर साल 8% का ब्याज मिलता है। इसी समय, हर साल क़ीमत भी औसतन 8% बढ़ रही है।

इस परिस्थिति में आपका कंपाउंड रिटर्न इंफ़्लेशन के बराबर रहेगा।

इसमें भले ही आपके कुल धन में बढ़ोत्तरी हो, लेकिन आपको फ़ायदा नही मिल पाएगा। 10 सालों में आपके ₹1 लाख बढ़कर ₹2.16 लाख हो जाएंगे। इसमें जो सामान आप 10 साल पहले ₹1 लाख में खरीद सकते थे उसे आज औसतन ₹2.16 लाख में खरीदेंगे। नतीजतन, आपके ₹1 लाख की खरीदारी क्षमता 10 साल पहले की तुलना में अब कम हो चुकी है।                    

इस प्रकार आपके पास धन की मात्रा में बढ़ोतरी सिर्फ़ एक भ्रम है जो क़ीमत बढ़ने के कारण खत्म हो जाता है।

इंफ़्लेशन के कारण एडजस्ट न कर पाने की समस्या आज आम हो चुकी है। लोग छोटी चीज़ों के बारे मे ही सोच पाते हैं, और इंफ़्लेशन के भविष्य में प्रभाव को समझना बेहद मुश्किल हो जाता है।

दरअसल, हमारे लिए कम इंफ़्लेशन वाली अर्थव्यवस्था बनने का समाधान है, लेकिन चूंकि इस पर चर्चा नहीं हुई है, इसलिए आप जैसे बचतकर्ता और इंवेस्टर को इंफ़्लेशन के लिए हर समय मानसिक रूप से तैयार रहना चाहिए क्योंकि इसके अलावा और कोई रास्ता नहीं है। इंफ़्लेशन से बचा नहीं जा सकता।

तो आप इंफ़्लेशन से कैसे पार पा सकते हैं?

सटीक रूप से यह बताना संभव नहीं है कि इंफ़्लेशन आपके इंवेस्टमेंट पर किस प्रकार असर डालेगी, लेकिन आप इससे पार पाने के विकल्प तलाश सकते हैं :

 

1. अपने मासिक बजट को फ़िर से देखें और जांचे

आपको अपने घरेलू बजट को फिर से तय करना होगा। अपने ज़रूरी और गैर-ज़रूरी खर्चों को पहचानें।

विकल्प देखें कि आप किन खर्चों को रोक सकते हैं। बाहर भोजन करने में कमी लाएं और जहां भी कर सकते हो, कुछ सबस्क्रिप्शन सर्विस भी कम करें।

अपनी कमाई के प्रतिशत के रूप में अपने घरेलू बजट को बनाए रखना ट्रैक पर बने रहने का एक और तरीका है।

उदाहरण के तौर पर, अगर आप ₹50,000 कमाते हैं और आपके घरेलू खर्च ₹30,000 के हैं, तो यह आपकी सैलरी का 60% हुआ।

गैर-ज़रूरी खर्चों को कम करके, आप अपने घरेलू खर्चों को सैलरी के 60% पर बनाए रख सकते हैं।

साथ ही, फ़ायनेंशियल गोल बनाते समय भी, इंफ़्लेशन को ध्यान में रखें।

 

2. म्यूचुअल फ़ंड/शेयर में इंवेस्ट करें

इंफ़्लेशन से पार पाने का यह एक अच्छा तरीका है। अच्छे फ़ंडामेंटल वाली फ़र्म इंफ़्लेशन का मुकाबला कर सकती हैं और मुनाफ़ा कमाना शुरू कर सकती हैं, इसलिए इन कंपनियों में इंवेस्ट किया जा सकता है।

सभी इंवेस्टर को बताया जाता है कि स्टॉक में इंवेस्ट करना जोखिम भरा हो सकता है। हालांकि यह समझने में भी ज्यादा समय नहीं लगना चाहिए कि इंफ़्लेशन इससे भी बड़ा जोखिम है।

और इंफ़्लेशन से मुकाबला करते हुए, उसके ऊपर वास्तविक लाभ कमाने के लिए आपको उस चीज में  इंवेस्ट करना होगा जो इंफ़्लेशन के साथ बढ़ती है।

आप लंबे समय के लिए SIP (सिस्टमैटिक इंवेस्टमेंट प्लान) में भी पैसा लगा सकते हैं, इससे आपको बाज़ार की अस्थिरता और इंफ़्लेशन से मुकाबला करने में मदद मिलेगी।

ऐसे तमाम म्यूचुअल फ़ंड हैं जो आपको अच्छे रिटर्न देते हैं और इनकी मदद से इंफ़्लेशन से पार पाया जा सकता है।

 

3. सोने या चांदी में इंवेस्टमेंट करें

हम सभी जानते हैं कि सोने और चांदी जैसी वस्तुओं को ऐतिहासिक रूप से इंफ़्लेशन से बचने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। जब किसी मुद्रा की क़ीमत गिरती है, तो इंवेस्टर एक सुरक्षित वस्तु यानि सोने में इंवेस्ट करते हैं।

इसमें इंफ़्लेशन से ज़्यादा रिटर्न मिलता है। हर इंवेस्टर के पोर्टफ़ोलियो में 10-20% तक की हिस्सेदारी सोने की होनी चाहिए।

इसे लॉन्ग टर्म इंवेस्टमेंट माना जाना चाहिए, अगर आपने अभी तक सोने में इंवेस्टमेंट नहीं किया है, तो गोल्ड ETFs, गोल्ड म्यूचुअल फ़ंड सेविंग स्कीम या सबसे आसान और सुरक्षित विकल्प, डिजिटल गोल्ड में इंवेस्टमेंट करके धीरे धीरे अपनी होल्डिंग बढ़ा सकते हैं।

जार आपके पैसे को डिजिटल गोल्ड में ऑटोमेटिक रूप से इंवेस्ट करके आपको इंफ़्लेशन से बचाकर रखता है।

ऑनलाइन ट्रांजेक्शन से स्पेयर चेंज के इंवेस्टमेंट से यह प्रक्रिया और भी आसान हो जाती है। इसलिए आपको इसमें इंवेस्टमेंट किसी बोझ की तरह नहीं लगेगा।

यह आपके जीवन का हिस्सा बन जाएगा। इंफ़्लेशन को पीछे छोड़ें और छोटे-छोटे कदम उठाकर इंफ़्लेशन को मात देने वाले रिटर्न का फ़ायदा उठाएं - जार ऐप के ज़रिए अपना पैसा सोने में इंवेस्ट करना शुरू करें।

 

 

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